जलवायु वित्त पर पारदर्शिता और सहयोग भविष्य में निर्माण के क्षेत्र हैं: टेरी की उच्च स्तरीय चर्चा में COP वार्ताकार
10 दिसंबर, नई दिल्ली: शुक्रवार को नई दिल्ली में द एनर्जी एंड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित उच्च स्तरीय बैठक में भारतीय प्रतिनिधिमंडल के प्रमुख सदस्यों ने माना कि हाल ही में संपन्न हुए COP26 में भारत ने जलवायु वित्त पर पारदर्शिता के साथ-साथ विकसित देशों से दीर्घकालिक वित्तीय सहायता सहित अपनी चिंताओं को सफलतापूर्वक रखा।
सम्मेलन के एक महीने बाद आयोजित 'डीमिस्टिफाइंग COP26: की टेकअवे एंड फ्यूचर रोडमैप फॉर इंडिया' पर चर्चा में केंद्रीय वित्त मंत्रालय, विदेश मंत्रालय के साथ-साथ पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सदस्यों ने भाग लिया।
स्वागत भाषण देते हुए टेरी की महानिदेशक डॉ विभा धवन ने कहा, "यह कार्रवाई का दशक है। इस धरती को रहने योग्य बनाए रखने के लिए हमें इस मौके का सर्वोत्तम उपयोग करने की आवश्यकता है।"
डॉ. धवन ने कहा कि शून्य कार्बन उत्सर्जन, प्रौद्योगिकी विकास और क्षमता निर्माण के लक्ष्य साथ-साथ चलने चाहिए।
उन्होंने आगे कहा, "आगे सभी विकास सतत होने चाहिए। एक जैसे तरीकों से अब काम नहीं चलेगा।"
चर्चा में भाग लेते हुए, वित्त मंत्रालय की आर्थिक सलाहकार, सुश्री चांदनी रैना ने कहा कि COP26 में, भारत ने 2019 [COP25] के मुकाबले इस बार वित्त संबंधित मुद्दों पर बात करते हुए अपनी वापसी की है। सुश्री रैना ने कहा, "हमारे लिए दो सबसे महत्वपूर्ण चीजें 100 बिलियन अमरीकी डालर के लक्ष्यों पर पारदर्शिता और विकसित देशों से वित्तीय सहायता में वृद्धि थी।" उन्होंने कहा कि, तकनीकी, लेकिन महत्वपूर्ण है ये स्वीकार किया जाना कि जलवायु वित्त की कोई बहुराष्ट्रीय रूप से सहमत परिभाषा नहीं है। उन्होंने कहा, "और इस बात को भी स्वीकार किया गया है कि 100 बिलियन अमरीकी डालर नहीं मिले हैं यदि विकासशील देशों को इस ओर अधिक काम करना है, तो यह केवल वित्तपोषण के बल पर हो सकता है।"
विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव, श्री श्रीनिवास गोटरू ने कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) पर इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट पर COP26 में ज़ोर दिया गया। चार मुद्दों पर अधिक ज़ोर था: एनडीसी की वृद्धि, नेट-ज़ीरो, वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा, और कोयला।"
श्री गोटरू ने कहा, "नीति दिशा और नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों के संदर्भ में स्थिरता है। हम घरेलू उद्योग को निश्चितता की भावना देने में सक्षम हैं, और विशेष रूप से अनुच्छेद 6 [कार्बन बाजारों पर] पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।"
हिमांगना गुप्ता, COP26 प्रतिनिधिमंडल सदस्य, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, ने बताया कि, "भारत जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से संवेदनशील देशों में से एक है। विकासशील देशों को अभी भी 'नुकसान और क्षति' प्रदान नहीं की गई है। विकसित देशों ने जो प्रदान किया है वह 'नुकसान और क्षति' की सुविधा नहीं है बल्कि तकनीकी सहायता की सुविधा है।"
डालमिया सीमेंट (भारत) लिमिटेड के एमडी और सीईओ, उद्योग प्रतिनिधि श्री महेंद्र सिंघी ने कहा कि COP26 से एक महत्वपूर्ण बात यह भी सामने आयी कि, " देशों को अपने स्वयं के सफल एजेंडा की घोषणा करने की ज़रूरत है जैसे भारत की वन सन वन वर्ल्ड वन ग्रिड पहल।"
श्री सिंघी ने यह भी कहा, "वैश्विक अर्थव्यवस्था के नब्बे प्रतिशत ने नेट-ज़ीरो कार्बन के लिए हस्ताक्षर किए हैं।"
श्री मनजीव सिंह पुरी, पूर्व राजनयिक और विशिष्ट फेलो, टेरी, ने रेखांकित किया कि "जलवायु परिवर्तन एक महंगी प्रक्रिया है... लेकिन क्या लाभ लागत से अधिक होगा? सरकारें उस पर सोच सकती हैं।"
श्री अभिषेक कौशिक, फेलो और एरिया संयोजक, टेरी ने ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट सहित COP26 के परिणामों पर एक प्रस्तुति दी, और पेरिस रूलबुक के तहत प्रमुख मुद्दों पर भी प्रकाश डाला।
टेरी के बारे में
द एनर्जी एंड रिसोर्स इंस्टीट्यूट यानि टेरी एक स्वतंत्र, बहुआयामी संगठन है जो शोध, नीति, परामर्श और क्रियान्वयन में सक्षम है। संगठन ने लगभग बीते चार दशकों से भी अधिक समय से ऊर्जा, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन जैसे क्षेत्रों में संवाद शुरू करने और ठोस कदम उठाने का कार्य किया है।
संस्थान के शोध और शोध-आधारित समाधानों से उद्योगों और समुदायों पर परिवर्तनकारी असर पड़ा है। संस्थान का मुख्यालय नई दिल्ली में है और गुरुग्राम, बेंगलुरु, गुवाहाटी, मुंबई, पणजी और नैनीताल में इसके स्थानीय केंद्र और परिसर हैं जिसमें वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों, अर्थशास्त्रियों और इंजीनियरों की एक बहु अनुशासनात्मक टीम कार्यरत है।
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