ये वो समय है जब देश में सार्वजनिक मंचो पर हमें अक्षय ऊर्जा और ई-वाहन जैसे शब्द सुनाई दे रहे हैं। इसके अतिरिक्त बिजली या परिवहन क्षेत्रों के सन्दर्भ में आजकल मूलभूत रूपांतरण की बातें भी सुनाई पड़ती हैं। निश्चित रूप से, भारत का बिजली क्षेत्र, विशेषकर इसका उत्पादन पक्ष, इस रूपांतरण के पैमाने पर काफी आगे बढ़ गया है। और इस रूपांतरण का कारण है बड़े पैमाने पर अक्षय ऊर्जा की बढ़ती हिस्सेदारी। जहाँ तक परिवहन क्षेत्र की बात है, वहां तो ई-वाहन बदलाव के वाहक बनने जा रहे हैं।
अक्षय ऊर्जा उत्पादन और ई-वाहन को चार्ज करना- इन दोनों को कामयाब बनाने के लिए विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) और विद्युत् नियामकों की भूमिका अहम है। सबसे पहले बात करें ई-वाहन चार्जिंग की। ई-वाहनो को चार्ज करने के लिए-बिना रुकावट, विश्वसनीय बिजली की उपलब्धता ज़रूरी है। जब हम बिजली विश्वसनीयता की बात करते हैं तो हमें लगता है कि बिजली की आपूर्ति दिल्ली की तरह देश में हर जगह एक समान है, 24X7 और पूर्णतः विश्वसनीय। परन्तु वास्तविकता इससे कहीं अलग है। प्रयास एनर्जी ग्रुप का `एनर्जी सप्लाई मॉनिटरिंग इनिशिएटिव' (http://watchyourpower.org/) देश के विभिन्न राज्यों में बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता और विश्वसनीयता का चित्रण करता है और ये आंकड़े यह दर्शाते हैं की अधिकतर सभी स्थानों पर बिजली की आपूर्ति व्यवधान-रहित नहीं है।
अतः यह स्पष्ट है कि बड़े शहरों में भी बिजली आपूर्ति की विश्वसनीयता और गुणवत्ता शंकास्पद है। क्या ऐसी स्तिथियाँ लोगों में ई-वाहन चार्जिंग के ढाँचे की तरफ विश्वास जगा पाएंगी, इसमें संदेह है। और इसका सीधा असर ई-वाहनों को अपनाने की गति पर पड़ सकता है।
जहाँ तक अक्षय ऊर्जा का सम्बन्ध है, पिछले वर्ष की कुछ घटनाएं - जैसे की पीपीए (Power Purchase Agreements) का कुछ राज्यों द्वारा ना मानना, या फिर अक्षय ऊर्जा की खरीद में बिना किसी कारण कटौती अथवा राज्य के विद्युत नियामक द्वारा अक्षय ऊर्जा की नीलामी के खिलाफ राज्य सरकार को सलाह देना - काफी चौंकाने वाली और नकारात्मक रहीं हैं। ये घटनाएं यह भी दर्शाती हैं कि जहाँ तक राष्ट्रीय लक्ष्यों का सवाल है, कुछ डिस्कॉम्स और राज्य नियामक ऐसे भी हैं जिनका इन महत्वाकांक्षी लक्ष्यों के साथ वैचारिक रूप से सामंजस्य नहीं है। ना केवल ये अक्षय ऊर्जा क्षेत्र के विकास के लिए बाधा हैं, ये एक धारणा बनाते हैं कि भारतीय व्यापार जगत में राजनीतिक और नियामक खतरें हैं। वास्तव में, यह 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' के एकदम विपरीत है और इससे निवेशकों को गलत संकेत मिलते हैं।
ये सब अंततः मूलभूत समस्याओं को दिखाता है, जिनमें शामिल हैं (1) डिस्कॉम का आर्थिक स्वास्थ्य एवं कई मामलों में उनकी कार्य निपुणता और (2) उपभोक्ता टैरिफ जो कि दरअसल बिजली उत्पादन और वितरण की पूरी लागत को नहीं दर्शाते। हालांकि, पिछले दशकों में UDAY जैसी योजनाओं के माध्यम से विद्युत् वितरण क्षेत्र में सुधार करने का प्रयास किया गया है, यह स्पष्ट है कि प्रमुख अंतर्निहित कारणों पर ध्यान केंद्रित किया जाये। अक्षय ऊर्जा के राष्ट्रीय लक्ष्यों को समयबद्ध आधार पर प्राप्त करने के लिए सम्बंधित संस्थाओं का राजनीति से ऊपर आना अनिवार्य है।