2025 तक गुरुग्राम की पानी की आवश्यकता 874.3 मिलियन लीटर प्रतिदिन तक पहुंच सकती है और ये आवश्यकता 2007 की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है। पानी की ज़रूरत बढ़ेगी लेकिन साथ ही खबर ये भी है कि इस शहर के जल निकाय खतरनाक स्तर पर सिकुड़ रहे हैं। इसके कारण कई हैं, जैसे - बिल्डरों के अतिक्रमण, सीवेज की डंपिंग, गाद और निर्माण कचरा और इसकी वजह से 55.2 (2007 में) किमी2 से 2025 तक जल निकाय 0.42 किमी2 तक सिकुड़ने का अनुमान है।
ये तथ्य हाल फिलहाल महिंद्रा-टेरी सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (सीओई) के द्वारा लॉन्च की गयी रिपोर्ट 'वॉटर सस्टेनेबिलिटी असेसमेंट ऑफ़ गुरुग्राम सिटी' में सामने आए हैं।
क्या कहती है रिपोर्ट?
पिछले कई सालों में गुरुग्राम में निर्माण कार्य तेज़ी से हुए हैं। गुरुग्राम में बढ़ते शहरी विकास को देखते हुए, 2025 तक निर्मित क्षेत्र बढ़कर 518.8 किमी2 होने का अनुमान है, जो 2007 के मुकाबले लगभग तीन गुना है। इसका कारण है पिछले दो दशकों में प्रमुख औद्योगिक केंद्र के रूप में गुरुग्राम का उभरना।
2025 तक गुरुग्राम में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होगी। जनसंख्या लगभग 4.3 मिलियन होगी और साथ में पानी की मांग बढ़ कर 874.3 MLD हो जाएगी।
गुरुग्राम शहर में उत्पन्न अपशिष्ट जल की मात्रा 2025 में बढ़कर 699.4 एमएलडी होने का अनुमान है। वर्तमान में मौजूद जल-मल शोधन प्रणाली (एसटीपी) की उपचार क्षमता 388 एमएलडी है जो आगे चल कर अपर्याप्त साबित होगी और फिर बचा हुआ अपशिष्ट जल जलमार्ग को प्रदूषित करेगा । इसलिए इसे बढ़ाकर 734.37 एमएलडी करने की जरूरत है।
ख़राब शहर नियोजन है गुरुग्राम की कहानी
टेरी की सस्टेनेबल बिल्डिंग्स में रिसर्च एसोसिएट तरीषी कौशिक, आपदाओं से जूझ रहे गुरुग्राम पर कहती हैं, "कुछ सालों से गुरुग्राम, मानसून के दौरान अनेक समस्याओं का सामना कर रहा है। 2016 और 2018 की बाढ़ बुरे सपने की तरह थी; अंडरपास जलमग्न हो गए थे, जगह जगह सड़के धंस गयी थी, गोलचक्कर, सड़क, चौराहों में जलभराव हो गया था। गुरुग्राम को बड़े पैमाने पर कंक्रीटीकरण, सिकुड़ती झीलों, नालों के प्राकृतिक प्रवाह और पारंपरिक बांधों की तबाही, प्रशासन द्वारा गाद निकालने जैसी अपर्याप्त मानसूनी तैयारियां और साथ ही खराब शहर नियोजन का खामियाजा भुगतना पड़ा है। जलवायु परिवर्तन (Climate Change) की वजह से बारिश के पैटर्न में बदलाव आया है और इससे स्थिति विकराट हो गयी है। इससे पहले गुरुग्राम में दो से तीन दिन लगातार हल्की बारिश देखने को मिलती थी, लेकिन पिछले दशक में यह देखा गया है कि मानसून के महीनों में अनियमित बारिश, यानी उतनी ही बारिश केवल 2-3 घंटे में ही हो जाती है। ये चरम घटनाएं पिछले काफी समय से पूरे उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (Tropical Region) में हो रही हैं।"
निर्मित क्षेत्र और अतिक्रमण भी है कारण
इस पर तरीषी का कहना है कि निर्मित क्षेत्रों का विस्तार और अतिक्रमण का गुरुग्राम में प्राकृतिक जल निकायों पर प्रभाव पड़ रहा है। वर्ष 1956 में 640 जल निकाय थे जो 2019 में घटकर 251 हो गए हैं। 251 में से 200 अतिक्रमित पाए गए। यदि हम घाटा झील का उदाहरण लें, तो वर्ष 2000 में यह 370 एकड़ क्षेत्र में फैली हुई थी और लगभग 50 फीट तक गहरी थी। झील अब घटकर महज 50 एकड़ क्षेत्र में रह गई है और भूजल स्तर भी घट रहा है।
शहरी जल प्रबंधन और एक नया दृष्टिकोण
'वॉटर सस्टेनेबिलिटी असेसमेंट ऑफ़ गुरुग्राम सिटी' स्टडी में एक नए दृषिकोण को अपनाया गया है जिसका इस्तेमाल मूल्यांकन (evaluation) में पहले नहीं हुआ है। इस स्टडी में शहरी जल प्रबंधन से जुड़े सभी पहलुओं पर ध्यान दिया गया है जो शहरी जल चक्र के लिए महत्वपूर्ण हैं, जैसे - भूजल, बरसाती पानी, पानी की मांग और आपूर्ति, अपशिष्ट जल, बाढ़ आदि। ये सभी पहलू महत्वपूर्ण हैं, इन्हें एक दूसरे से अलग करके नहीं देखा जा सकता जैसे कि पहले किया गया है। इस दृष्टिकोण को एकीकृत शहरी जल प्रबंधन (आईयूडब्ल्यूएम) के रूप में भी जाना जाता है। आईयूडब्ल्यूएम उन समाधानों को डिजाइन करने पर आधारित है जो प्रकृति में अलग-थलग नहीं हैं बल्कि परस्पर जल प्रबंधन समूह हैं।
टेरी की सस्टेनेबल बिल्डिंग डिवीजन (Sustainable Building Division) जल स्थिरता के सिद्धांतों को मुख्यधारा में लाने के लिए अभिनव (innovative), एकीकृत (integrated) और लागत प्रभावी (cost-effective) समाधानों पर काम कर रहा है। नोडल मंत्रालयों/विभागों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, कारपोरेट, शिक्षाविदों, और अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसियों सहित विविध संगठनों के साथ काम करते हुए, सस्टेनेबल डिवीजन डिजाइन, निर्माण, संचालन, रखरखाव और अनुकूलन के माध्यम से जल दक्षता को बढ़ावा देती है। राष्ट्रीय स्तर की नीतियां तैयार करने और इमारतों में जल दक्षता को अपनाने और लागू करने के लिए वैश्विक रणनीतियों का सुझाव देने के लिए सैकड़ों जल कुशल परियोजनाओं के डिजाइन तैयार किए हैं ।
कैसे निपटे आपदाओं से गुरुग्राम?
गुरुग्राम में बढ़ती पानी की परेशानियों को दूर करने के लिए हर स्तर (मैक्रो और माइक्रो) पर बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। सबसे तत्काल आवश्यक कदम उठाने की ज़रूरत हैं जैसे - ख़त्म होते जल निकायों और नष्ट बांधों की बहाली, उचित वर्षा जल प्रबंधन और बाढ़ से निपटने के लचीले उपाय जैसे - पानी के मीटर, पाइपलाइन, पानी और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट आदि को भी बढ़ाया जाना चाहिए। विशेष रूप से भूजल उपलब्धता और निष्कर्षण से संबंधित आंकड़ों के अंतराल की पहचान और उन्हें भरने की आवश्यकता है। अंत में, गुरुग्राम में टिकाऊ जल प्रबंधन प्राप्त करने के लिए, विभिन्न चार स्तरों - अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय/राज्य, शहर और निर्माण/स्थल - के बीच एक मजबूत हितधारक कड़ी की आवश्यकता है।