कोरोना वायरस की इस वैश्विक आपदा में न सिर्फ़ कूड़ा प्रबंधन की बल्कि अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े कचरा इकठ्ठा करने वाले लोगों की दशा दयनीय है। कचरा प्रबंधन के इस दौर में, भारत में लगभग 40 लाख अनौपचारिक कूड़ा इकठ्ठा करने वाले हैं। जहाँ भारत की राजधानी दिल्ली में अकेले ही लगभग 5 लाख अनौपचारिक कूड़ा इकठ्ठा करने वाले रहते हैं, वही भारत के प्राचीन शहर वाराणसी में ये लोग लगभग 12000 हैं जो कि इस अचानक से हुए लॉकडाउन में यथा स्थिति में फंसे हुए हैं।
ये लोग अधिकतर दिहाड़ी मज़दूरों की तरह रोज़ाना कूड़ा इकठ्ठा करते और बीनते हैं और इन्हें बेच कर अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी चलाते हैं। अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े होने के कारण इनमें से कई लोगों के पास ना तो राशन कार्ड है और न ही कोई बैंक खाता।
वाराणसी के तेलियाने क्षेत्र से सादिक़ बताते हैं कि "हम 22 मार्च से ही इस लॉकडाउन के कारण घर में बंधे हुए हैं, ना घर से बाहर निकल पा रहे हैं और न ही घर के लिए कुछ कमा पा रहे हैं। हम पहले लगभग 300 -400 रुपए प्रतिदिन कमा पा रहे थे। हमको इस बात की चिंता है कि जो जमा राशन है वो भी ख़त्म होने को है और अब ये समझना मुश्किल है कि कोरोना वायरस के इस बुरे समय में अगर ये बचे हुए लॉकडाउन के दिन जैसे तैसे काट भी लेते हैं तो आगे कूड़ा इकठ्ठा करना कितना खतरनाक हो सकता है।"
दिल्ली के आरिफ जो कि दक्षिणी दिल्ली की एक कॉलोनी से कूड़ा इकठ्ठा करते हैं वो बताते हैं कि "इस बुरे दौर में वेस्ट रिसाइक्लिंग का काम बंद पड़ा हुआ है और कॉलोनी से मिलने वाला सारा का सारा कूड़ा कॉलोनी के गेट से लेकर डिस्पोजल के लिए भेज दिया जा रहा है। अनौपचारिक क्षेत्र के कूड़ा इकठ्ठा करने वाले लोग भी दिखाई नहीं दे रहे और लॉकडाउन में बंद हैं। "
दिल्ली के एक बड़े स्तर के वेस्ट डीलर मोहम्मद सागिर कहते हैं कि "इस लॉकडाउन की स्थिति में सारे वेस्ट मटेरियल कलेक्शन गोडाउन बंद हैं और ट्रांसपोर्टेशन बंद होने के कारण और कोरोना वायरस के डर के कारण मज़दूर नहीं हैं जिससे रिसाइक्लिंग प्लांट भी बंद हैं"
निखिल जो की मदनपुर खादर इलाके में पेपर वेस्ट कलेक्शन गोडाउन के मालिक हैं, उनका कहना हैं कि "राशन की किल्लत की वजह से एक एक गोदाम के बाहर कई अनौपचारिक कूड़ा इकठ्ठा करने वाले एकत्रित हो रहे हैं। कई गोदाम के मालिक आटा और चीनी की व्यवस्था करवा कर इनके खाने का इंतज़ाम करवा रहे हैं। इनकी स्थिति दयनीय हैं। कोई व्यवस्था इनको सरकार से मुहैय्या नहीं हो पा रही हैं।"
वक्त की दशा साफ़ बताती हैं कि ज़रूरत इस वक़्त न सिर्फ़ इन अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े कूड़ा इकठ्ठा करने वाले लोगों को एक संगठन में जोड़ के औपचारिक बनाने की हैं बल्कि समाज में इनके महत्व समझने की भी है।
भारत में हमें इनकी अहमियत को समझना होगा। ये वो नायक हैं जिनकी कहानियां हमारे सामने अक्सर नहीं आती। हमारे देश में इनकी एक बड़ी भूमिका हैं और आवश्यकता भी। वरना आने वाले वक़्त में ना तो सड़को पर कूड़ा खरीदने वाले मिलेंगे और न कूड़े से कोई संसाधन इकठ्ठा होगा। न ही आपको रीसायकल हुए उत्पाद सस्ते मिलेंगे और न ही बढे हुए रिसाइक्लिंग दर।
इस वक़्त ये बहुत अहम है कि कॉर्पोरेट्स, एनजीओ और प्रोडूसर रेस्पॉन्सिबिल्टी ऑर्गनाइज़ेशन न सिर्फ आगे बढ़कर इस अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े कूड़ा इकठ्ठा करने वाले कर्मियों के संरक्षण की योजना बनाएं बल्कि इनको वेस्ट रिसाइक्लिंग इकाइयों और वेस्ट मैनेजमेंट कंपनियों के साथ जोड़कर औपचारिक बनवाने में सहयोग दें।
इस वैश्विक आपदा की स्थिति में क्या भारत सरकार अपने इन गरीब रिसाइक्लिंग इंडस्ट्री से जुड़े अनौपचारिक क्षेत्र के कूड़ा इकठ्ठा करने वालों की तरफ ध्यान दे पाएगी? सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं।