देश में पानी की कमी को हल करने के लिए जल संरक्षण की पारंपरिक समझ को आधुनिक तकनीकी विकास और क्षमता के साथ मिलाने की ज़रूरत है। ‘एयर टू वाटर’ तकनीक दूरदराज और साथ ही दूषित पानी की समस्या झेल रहे क्षेत्रों के लिए पानी की आपूर्ति के अवसर देती है।
''गाँव के लोगों के लिए हवा से पानी बनाने का ये तरीका किसी जादू की तरह है। इस तकनीक से बनाया गया पानी बिल्कुल सामान्य पानी जैसा ही है। मैं चाहूंगा कि आने वाले वक़्त में हम गाँव की पानी की समस्या को देखते हुए इसका इस्तेमाल करें।'' - ये कहना है कोटिगाँव के सरपंच दया गाओंकर का हवा से पानी बनाने की तकनीक के बारे में। इस तकनीक का नाम है एटमॉस्फेरिक वॉटर जनरेटर (AWG) एंड रेमिनरलाइज़र।
पानी पर हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी निर्भर करती है लेकिन अभी भी ग्रामीण इलाकों में लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों में पानी की समस्या से निपटने के लिए इस तरह की तकनीक कारगर हो सकती है।
क्या है ये तकनीक?
ये एटमॉस्फेरिक वॉटर जनरेटर (AWG) एंड रेमिनरलाइज़र तकनीक है। यह मशीन वातावरण में मौजूद हवा की नमी को पानी में बदल देती है। इसे मैथरी एक्वाटेक प्राइवेट लिमिटेड ने विकसित किया है और टेरी इस तकनीक का परीक्षण कर रहा है। फिलहाल गोवा और वाराणसी के ग्रामीण इलाकों में इसका परिक्षण किया जा रहा है।
इस तकनीक का पहले दक्षिण गोवा के कोटिगाओ और गाओदोंग्रेम गांव में 15 से 18 मार्च 2021 के बीच पायलट के तौर परीक्षण किया गया और यहाँ इस तकनीक ने वायुमंडलीय नमी से लगभग 100 लीटर पानी प्रतिदिन सफलतापूर्वक उत्पन्न किया। इस मशीन को नाम दिया गया है ''मेघदूत'', मेघदूत पानी को फ़िल्टर करता है और रिमिनरलाइज़ परत यह सुनिश्चित करती है कि पानी की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानकों के अनुसार हो।
तकनीक को अपनाना चाहेंगे गाँव के लोग
टेरी इस दिशा में साक्ष्य जुटाने की कोशिश कर रहा है कि लोगों के बीच इस तकनीक की कितनी स्वीकार्यता है। यह जानने के लिए टेरी ने कोटीगांव और गाओदोंग्रेम के लोगों के बीच एक सर्वेक्षण भी किया जिसमें पानी से जुड़ी समस्याओं, पीने के पानी की गुणवत्ता जैसे स्वाद और गंध को जानने की कोशिश की गयी और साथ ही AWG तकनीक से उत्पन्न पानी कि गुणवत्ता और गाँव वालों के लिए उसके महत्व को समझने की कोशिश की गयी।
कोटीगांव के सरपंच दया गाओंकर बताते हैं कि अप्रैल के मध्य और पूरे मई के महीने में उनके गाँव में पानी की कमी होती है। वे लोग इस तकनीक का इस्तेमाल पानी की समस्या से निपटने के लिए करना चाहेंगे। और इस तकनीक को गाँव में लाने के लिए वे ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफ़िसर या सांसद से इस बारे में बात भी करेंगे।
क्या इस तकनीक से हवा रूखी हो जाएगी?
कोटीगांव के लोगों को इस तकनीक से उम्मीदे हैं लेकिन साथ में एक सवाल भी है कि क्या हवा से पानी बनाने की इस तकनीक से हवा की नमी में कमी आ जाएगी? तो इस पर टेरी की रिसर्च एसोसिएट स्नेहलता तिगाला का कहना है कि, ''हवा सामान्य रूप से उच्च वायुमंडलीय दबाव से निम्न वायुमंडलीय दबाव वाली जगहों की ओर बहती है और ऐसा लगातार होता है। हवा में मौजूद नमी की भरपाई तुरंत ही प्राकृतिक जल चक्र के ज़रिए हो जाती है। इस संयंत्र की सफ़लता के लिए एक स्थान के रूप में गोवा कहीं अधिक फायदेमंद जगह है क्योंकि यह तटीय इलाके में स्थित है और ऐसे इलाकों में पूरे साल भर हवा में अच्छी-खासी नमी मौजूद रहती है।''
स्नेहलता ये भी कहती हैं कि, ''मेघदूत में फिल्टरेशन के बाद मिलने वाले संघनित जल वाष्प में अतिरिक्त खनिज लेयर के ज़रिए आवश्यक खनिज मिलाए जाते हैं जिससे कि ये पानी पीने लायक हो जाता है।''
तटीय इलाका होने के कारण हवा में नमी की भरपाई हो जाती है लेकिन क्या शुष्क इलाकों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा सकता है तो इस पर मिस्टर एम.रामकृष्ण, फाउंडर एंड मैनेजिंग डायरेक्टर, मैथ्री एक्वा टेक प्राइवेट लिमिटेड, कहते हैं, "तकनीक के लिए हवा में लगभग 25% से 30% नमी की ज़रूरत होती है। अगर ऐसा है तो यह मशीन आसानी से काम करेगी।"
गोवा और वाराणसी में पायलट के तौर पर इस्तेमाल की जा रही इस तकनीक पर डॉ स्यामल कुमार सरकार, प्रोग्राम डायरेक्टर, टेरी, का कहना है, ''देश में पानी की कमी को हल करने के लिए जल संरक्षण की पारंपरिक समझ को आधुनिक तकनीकी विकास और क्षमता के साथ मिलाने की ज़रूरत है। ‘एयर टू वाटर’ तकनीक दूरदराज और साथ ही दूषित पानी की समस्या झेल रहे क्षेत्रों के लिए पानी की आपूर्ति के अवसर देती है।''